
बरोदा उपचुनाव में उम्मीदवारों को लेकर लंबे इंतजार के बाद नामांकन के आखिरी दिन तस्वीर साफ हो गई। भाजपा ने गुरुवार रात को जहां फिर से पहलवान योगेश्वर दत्त पर विश्वास जताया तो वहीं कांग्रेस ने रातभर चले ड्रामे के बाद शुक्रवार को दिन में सीधे अपने उम्मीदवार का नामांकन ही कराया। कांग्रेस ने यहां से स्वर्गीय विधायक श्रीकृष्ण हुड्डा के परिवार पर भरोसा जताने की जगह नए चेहरे इंदुराज नरवाल को उम्मीदवार बनाया है।
वहीं इनेलो ने 2019 में यहां से चुनाव लड़े जोगेंद्र मलिक को फिर से अंतिम क्षणों में उम्मीदवार घोषित किया। चुनाव में रोचक मोड़ उस समय आ गया, जब टिकट न मिलने से नाराज कपूर नरवाल ने पंचायती उम्मीदवार के तौर पर अपना नामांकन किया। महम से निर्दलीय विधायक बलराज कुंडू उनके साथ रहे और कहा कि कृषि बिलों के विरोध में पंचायती उम्मीदवार मैदान में उतरा है।
लोकतंत्र सुरक्षा पार्टी से खुद राजकुमार सैनी यहां से नामांकन कर चुके हैं। कुल 24 उम्मीदवार मैदान में हैं। भाजपा के योगेश्वर को उनके सामने तीन बड़े जाट चेहरे होने का फायदा मिल सकता है, लेकिन सैनी नॉन जाट वोटों में कुछ सेंध लगाकर मुश्किल बढ़ा सकते हैं।
जानिए उम्मीदवारों के बारे में योगेश्वर को सैनी तो इंदुराज को कपूर पहुंचाएंगे नुकसान
योगेश्वर दत्त, भाजपा (जाट वोट बंटने का मिलेगा फायदा)
योगेश्वर ने 2019 में डीएसपी पद से त्यागपत्र देकर बरोदा से भाजपा की टिकट पर लड़कर राजनीति में कदम ही रखा था।
- मजबूती: 94 हजार जाट मतदाता तीन बड़े नेताओं में बटेंगे। वहीं ये अकेले ब्राह्मण हैं और यहां करीब 21 हजार ब्राह्मण वोट हैं, जिनका इन्हें फायदा मिलेगा।
- कमजोरी: पहलवान हैं, लेकिन मंझे हुए नेता नहीं। राजकुमार सैनी नॉन जाट वोट लेकर इन्हें नुकसान पहुंचा सकते हैं।
- अवसर: पिछले चुनाव में जेजेपी के भूपेन्द्र मलिक भी मैदान में थे, जिन्होंने 30 हजार से ज्यादा वोट लिए थे, लेकिन इस बार जेजेपी भी साथ है।
- चुनौती: स्थानीय नेताओं को साथ लेकर चलना बड़ी चुनौती होगी। इसके लिए इन्हें मंझे हुए नेता की तरह लड़ना होगा। किसानों को मनाना भी चुनौती है।
इंदुराज नरवाल, कांग्रेस (नया चेहरा होने का फायदा भी और नुकसान भी)
कांग्रेस के प्रत्याशी इंदुराज नरवाल बरोदा हलके के रिंढाणा गांव के रहने वाले हैं। 2005 में जिला परिषद का चुनाव जीते थे।
- मजबूती: युवा व नए चेहरे हैं और अभी तक विधानसभा चुनाव नहीं लड़े हैं इसलिए कोई आरोप नहीं है।
- कमजोरी: नए चेहरे होने के कारण क्षेत्र में पहचान कम है और विधानसभा चुनाव लड़ने का अनुभव नहीं है। कपूर नरवाल निर्दलीय के तौर पर मैदान में हैं, जो सीधे-सीधे इन्हें नुकसान पहुंचाएंगे।
- अवसर: यह कांग्रेस की सीट रही है। सभी नेताओं को साथ लेकर चल पाए तो इनके लिए बड़ा अवसर हो सकता है। भूपेंद्र हुड्डा का यह गढ़ है।
- चुनौती: स्व. विधायक श्रीकृष्ण हुड्डा के परिवार पर कांग्रेस ने इस बार विश्वास नहीं जताया, उनकी नाराजगी हो सकती है।
जोगेंद्र मलिक, इनेलो (खाप के बड़े गांवों से वोटों की बड़ी आस)
इनेलो प्रत्याशी जोगेंद्र सिंह मलिक बरोदा हलके के ईशापुर खेड़ी गांव के रहने वाले हैं। मलिक ने 2019 में भी बरोदा से इनेलो की टिकट पर चुनाव लड़ा था।
- मजबूती: क्षेत्र में मलिक खाप के कई बड़े गांव हैं और ये मलिक गोत्र से एकमात्र उम्मीदवार हैं।
- कमजोरी: एक बार चुनाव जरूर लड़ा है लेकिन ज्यादा वोट नहीं ले पाए थे। क्षेत्र में पकड़ कम है।
- अवसर: जेजेपी के सरकार में शामिल होने के बाद लोगों की नाराजगी बढ़ी है और रुख फिर से इनेलो की तरफ कुछ बढ़ा है, जिसका फायदा मिल सकता है।
- चुनौती: इनेलो के कम हुए जनाधार को फिर से खड़ा करने की बड़ी जिम्मेदारी इनके ऊपर है। दो अन्य जाट उम्मीदवार भी होने के कारण वोट बटेंगे।
कपूर नरवाल, निर्दलीय (कांग्रेस को हो सकता है नुकसान)
डॉ.कपूर नरवाल करीब 15 माह पहले जजपा से भाजपा में शामिल हुए थे। अब कांग्रेस से टिकट के दावेदार थे और टिकट नहीं मिली तो निर्दलीय मैदान में उतरे। मूलरूप से कथूरा गांव के रहने वाले हैं। इनेलो की टिकट पर दो बार चुनाव लड़ चुके हैं, लेकिन दोनों बार दूसरे स्थान पर रहें। इनके चुनाव लड़ने से कांग्रेस को नुकसान हो सकता है।
खुद के गांवों से शुरू हो जाएगी लड़ाई
भाजपा के उम्मीदवार योगेश्वर दत्त के गांव भैंसवाल कलां में करीब 7450 वोट हैं। कांग्रेस के उम्मीदवार इंदुराज नरवाल के गांव रिंढाणा में करीब 4400 वोट हैं। इनेलो प्रत्याशी जोगेंद्र मलिक के गांव ईशापुर खेड़ी में करीब 2700 वोट हैं। वहीं निर्दलीय प्रत्याशी डॉ. कपूर नरवाल का पैतृक गांव कथूरा में करीब 6650 वोट हैं।
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