हाईकोर्ट ने माना कि अंतिम संस्कार के मामले में परिवार के मनावाधिकारों का हुआ उल्लंघन - OTA BREAKING NEWS

Breaking

Post Top Ad

Responsive Ads Here

Tuesday 13 October 2020

हाईकोर्ट ने माना कि अंतिम संस्कार के मामले में परिवार के मनावाधिकारों का हुआ उल्लंघन

हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच में सोमवार को हाथरस घटना में पीड़िता के शव का अंतिम संस्कार बिना परिवार की मर्जी के कराए जाने के मामले में हुई सुनवाई का आदेश मंगलवार को देर शाम को आ गया। न्यायालय ने अपने आदेश में कहा है कि हाथरस के एसपी को निलम्बित किया गया तो डीएम को वहां बनाए क्यों रखा गया है। न्यायालय ने कहा कि हम राज्य सरकार से उम्मीद करते हैं कि वह इस सम्बंध में एक निष्पक्ष निर्णय लेगी।

हालांकि न्यायालय द्वारा डीएम को निलम्बित न किये जाने का कारण पूछे जाने पर अपर मुख्य सचिव, गृह अवनीश अवस्थी कोई संतोषजनक जवाब न दे सके। न्यायालय ने उनसे यह भी पूछा कि वर्तमान परिस्थितियों में जबकि अंतिम संस्कार के मामले में डीएम का एक रोल था, ऐसे में क्या उन्हें हाथरस में बनाए रखना उचित है। इस पर अपर मुख्य सचिव ने भरोसा दिलाया कि सरकार मामले के इस पहलू को देखेगी व इस पर निर्णय लेगी।

वहीं न्यायालय ने पीड़िता के परिवार, अपर मुख्य सचिव, डीजीपी, एडीजी (लॉ एंड ऑर्डर) व हाथरस डीएम प्रवीण कुमार को विस्तारपूर्वक सुनने के बाद अपने आदेश में कहा है कि तथ्यों से प्रतीत होता है कि मृतका का चेहरा दिखाने के परिवार के अनुरोध को प्रशासन ने स्पष्ट रूप से इंकार नहीं किया होगा लेकिन तथ्य यही है कि उनके बार-बार के अनुरोध के बावजूद इसे उनमें से किसी को भी नहीं दिखाया गया। न्यायालय ने कहा कि इस प्रकार गरिमापूर्ण ढंग से अंतिम संस्कार के अधिकार का उल्लंघन किया गया और न सिर्फ पीड़ित परिवार बल्कि वहां मौजूद लोगों और रिश्तेदारों की भावनाओं को भी आहत किया गया।

लिहाजा हमारे समक्ष महत्वपूर्ण मुद्दा है कि क्या आधी रात में जल्दबाजी से अंतिम संस्कार करके व बिना परिवार को मृतका का चेहरा दिखाए और आवश्यक धार्मिक क्रियाकलाप की अनुमति न देकर संविधान में प्रदत्त जीवन के अधिकार व धार्मिक स्वतंत्रता के अधिकार का उल्लंघन किया गया है। यदि ऐसा है तो यह तय करना होगा कि इसका कौन जिम्मेदार है ताकि उसकी जिम्मेदारी तय की जा सके व पीड़िता के परिवार की क्षतिपूर्ति कैसे की जा सकती है।

न्यायालय ने यह भी टिप्पणी की है कि आजादी के बाद शासन और प्रशासन का सिद्धांत ‘सेवा’ और ‘सुरक्षा’ होना चाहिए, न कि ‘राज’ और ‘नियंत्रण’ जैसा कि आजादी के पहले था। जिला स्तरीय अधिकारियों को ऐसी परिस्थितियों से डील करने के लिए सरकार की ओर से समुचित प्रक्रिया व दिशानिर्देश मिलना चाहिए। भविष्य में ऐसा विवाद न उत्पन्न हो, इस बावत भी न्यायालय विचार करेगी। न्यायालय ने अपने आदेश में अपर मुख्य सचिव के इस बयान को भी दर्ज किया कि सरकार जिला स्तरीय अधिकारियों के लिए ऐसी परिस्थितियों में अंतिम संस्कार को लेकर दिशानिर्देश जारी करेगी।

न्यायमूर्ति पंकज मित्तल और न्यायमूर्ति राजन रॉय की खंडपीठ ने सख्ती से यह भी आदेश दिया है कि जो अधिकारी इस मामले की विवेचना से नहीं जुड़े हैं, वे अपराध के बारे में अथवा साक्ष्य संकलन के बारे में बयान न दें क्योंकि यह भ्रम पैदा कर सकता है। न्यायालय व जांच एजेंसियां इस मामले को देख रही हैं लिहाजा गैर जिम्मेदराना बयानबाजी से परहेज किया जाए। न्यायालय ने यह भी कहा कि अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता में हस्तक्षेप न करने की मंशा रखते हुए, हम मीडिया व राजनीतिक दलों से भी अनुरोध करते हैं कि वे ऐसा कोई विचार न व्यक्त करें जिससे सामाजिक सद्भाव को नुकसान पहुंचे व पीड़िता के परिवार व अभियुक्तों के अधिकारों का उल्लंघन हो। न्यायालय ने कहा कि जिस प्रकार अभियुक्तों को ट्रायल पूर्ण होने से पहले दोषी नहीं ठहराना चाहिए, उसी प्रकार किसी को पीड़िता के चरित्र हनन में भी संलिप्त नहीं होना चाहिए।

मुआवजे की रकम को बैंक में जमा करें

न्यायालय ने कहा कि सरकार ने पीड़िता के परिवार के लिए मुआवजे की घोषणा की है लेकिन सम्भवतः वह उन्हें स्वीकार नहीं है क्योंकि परिवार के एक सदस्य ने कहा कि मुआवजा अब किसी काम का नहीं। फिरभी हम मुआवजे का प्रस्ताव परिवार को जल्द से जल्द दिया जाए और यदि वे लेने से इंकार करते हैं तो जिलाधिकारी किसी राष्ट्रीयकृत बैंक में ब्याज मिलने वाले खाते में इसे जमा कर दें, जिसके उपयोग के बारे में हम आगे निर्देश दे सकते हैं।



Download Dainik Bhaskar App to read Latest Hindi News Today
The High Court admitted that the family's rights violated in the funeral case


from Dainik Bhaskar https://ift.tt/3iUjQcA
via IFTTT

ADD











Pages