प्रजापिता ब्रह्माकुमारी ईश्वरीय विश्वविद्यालय के सेक्टर-7 स्थित सेवा केंद्र में दशहरा मनाया गया। इस मौके पर सेवा केंद्र की संचालिका राजयोगिनी प्रेम दीदी ने कहा कि प्रश्न ये उठता है कि क्या हमने अपने अंदर के रावण को मारा व जलाया है। रावण का अर्थ ही है रुलाने वाला। रावण दस सिर वाला नहीं, लेकिन मनुष्य के अंदर बुराइयां हैं यही तो रावण है। वास्तव में मनुष्य के अंदर की कमजोरियां उसे रुलाती हैं अर्थात परेशान करती हैं।
रावण के 10 शीश पांच विकार यानि काम, क्रोध, लोभ, मोह व अहंकार नर में भी हैं तो दोनों के विकारों का कंबाइंड स्वरूप हुआ। 10 सिर वाला रावण का पुतला हर वर्ष जलाते हैं और हर बार पुतला कुछ न कुछ फीट और बढ़ा देते हैं। इसका मतलब कि रावण मरा नहीं जला नहीं तभी तो हर वर्ष जलाने के बाद भी अगले वर्ष फिर जलाना पड़ता है। हर वर्ष पुतला और ऊंचा करने का मतलब है कि समाज में बुराइयां दिन प्रतिदिन बढ़ रही हैं, कम नहीं हो रही हैं। रावण के साथ कुंभकर्ण व मेघनाथ का पुतला भी बनाते हैं।
कुंभ का अर्थ होता है घड़ा और कर्ण का अर्थ होता है कान। तो जैसे घड़े में आवाज करने पर वह उसके अंदर ही गूंजती है बाहर नहीं आती वैसे ही आजकल लोग कुंभकर्ण के समान बन चुके हैं। उनको परमात्मा की आवाज सुनाई नहीं पड़ती। कुंभकर्ण के लिए कहते हैं कि वह छह महीने सोता था, छह महीने खाता था। आज के इंसान का भी वही हाल है खाना, पीना और सोना। चाहे पूरा घड़ा ज्ञान उनके कान में डाल दिया जाए वह एक कान से सुन दूसरे से बाहर निकाल देते हैं। मेघनाथ का अर्थ है मेघ की गर्जना करना पर बरसना नहीं तो आजकल लोग बातें बड़ी-बड़ी करते हैं पर प्रैक्टिकल जीवन में सिवाएं कुछ नहीं करते।
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