
संपूर्ण नवरात्र में दुर्गा के रूप में सांझी की पूजा करने के बाद दुर्गा अष्टमी के बाद वैसे तो नवमी को सांझी का विसर्जन किया जाता है, लेकिन इस बार नवमी को शनिवार का दिन होने से गढ़ी बीरबल उसके आसपास के ग्रामीण क्षेत्रों में रविवार को सांझी की प्रतिमा का विसर्जन किया गया।
सुबह से ही आसपास के सभी गांवों से महिलाएं यमुना में सांझी की प्रतिमा का विसर्जन करने यमुना किनारे पहुंचना शुरू हो गई थी और अपने परिवार की मंगलकामना का आशीर्वाद प्राप्त करते हुए सांझी को यमुना में विसर्जित कर पूजा अर्चना करके खुशी-खुशी विदाई थी तथा सांझी माता की परिवार के ऊपर कृपा दृष्टि बनी रहे। इसी मंगल कामना के साथ अगले साल फिर से नवरात्र के दिनों में पधारने का न्योता दिया।
सुख-शांति एवं समृद्धि के लिए ग्रामीण महिलाएं बनाती सांझी
ऐसा माना जाता है कि साल भर घर में सुख शांति एंव समृद्धि बनी रहे इसलिए ग्रामीण क्षेत्रों में महिलाएं मिट्टी से सांझी की प्रतिमा बनाती है। तथा अमावस्या के दिन सांझी की मिट्टी से बनाई गई मूर्ति को नवरात्र में स्थापित कर संपूर्ण नवरात्र में इसकी पूजा दुर्गा माता के रूप में करती है। सांझी को यहां दुर्गा माता का रूप माना जाता है। नवरात्र में इसके पूजन के बाद में खुशी-खुशी अगले साल आने की मन्नत मांग कर आज दुर्गा अष्टमी के दिन नौ दिन बाद सांझी रूपी दुर्गा की प्रतिमा का जल में विसर्जन कर दिया जाता है। लेकिन इस बार शनिवार के चलते रविवार को अगले दिन दशमी को सांझी का विसर्जन किया गया।
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