भिवानी | हुजूर कंवर महाराज ने कहा कि संतों का वचन कभी पुराना नही होता। संत चाहे किसी काल मे आए हों और किसी कुल में जन्म लिया हो उनका जीवन और उनकी शिक्षाएं इस काल जाल से बचने के लिए और जीवन का असल उद्देश्य प्राप्त करने के लिए होती हैं।
हुजूर कंवर महाराज रविवार को रविदास जयंती पर सिवानी स्थित आश्रम में उमड़ी साध संगत को सत्संग फरमा रहे थे। उन्होंने कहा कि यदि सीप का मोती चाहते हो तो समुंदर में डुबकी लगानी पड़ेगी। इसी प्रकार यदि भक्ति रूपी मोती पाना चाहते हो तो सतगुरु रूपी समुंदर में गोता लगाना ही पड़ेगा क्योंकि संतों की वाणी की यही खूबी होती है की उनकी वाणी को जब भी हम सुनते हैं हर बार उनका अलग ही सार और उद्देश्य निकल कर आता है। कंवर साहेब ने फरमाया कि संतों के दर्शन तो आसोज की बारिश जैसे हैं। जैसे आसोज के महीने की बारिश साढी और सावनी दोनों फसलों को लाभ देती है उसी प्रकार संतों के दर्शन से आपका जगत भी कल्याणकारी बनता है और अगत भी सुखदायक बनता है। उन्होंने कहा कि जब भी आपको कोई दुख तकलीफ हो तभी आप संतों की वाणी का मनन और चिंतन किया करो। आपकी दुख तकलीफ परेशानी पल भर में छूमंतर हो जाएगी। हुजूर महाराज ने कहा कि अपनी शक्ति को जब आप ध्यान बिंदु पर केंद्रित कर लोगे तभी आप त्रिकाल दर्शी हो जाओगे। संत रविदास जी ने भी यही कहा था कि जो चीज आप काबे और कैलाश में ढूंढने जाते हो वह तो आपके अंदर है। यही परम संत ताराचंद जी ने भी कहा कि बाहर का सारा झगड़ा झूठा है। आप अपने अंदर झांक कर देखो आपके घट भीतर एक अनूठा खेल चल रहा है। बाहर की चीजों को देख कर दीवाना मत होना। लेकिन इस सार को हम तभी समझ पाएंगे जब हम कुल वर्ण जाती पाती के झगड़े से उभर पाएंगे। रविदास जी ऐसे समय में इस धरा पर अवतरित हुए जिस समय जाती पाती का बोलबाला था। रविदास जी का बहुत विरोध हुआ कि आप नीची जाति में पैदा होकर परमात्मा की भक्ति नही कर सकते, लेकिन रविदास जी ने अपनी लग्न और धुन से तप और त्याग का वो नमूना प्रस्तुत किया कि सारा जगत अब इसे स्वीकार कर रहा है।
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