
अग्रोहा में संग्रहालय बनाने की तैयारियों शुरू हो चुकी हैं। अग्रोहा महाराजा अग्रसेन की राजधानी होने के कारण हिसार का नाम पूरे विश्व में हुआ है।अग्रोहा न जाने कितने बार उजड़ा कितने बार बसा है। यहां पर मुगल, अंग्रेज, मराठा आदि ने आक्रमण किए। अग्रोहा का पुराना इतिहास बहुत लंबे समय से एक थेह के रूप में दबा है। इसे पुरातत्व विभाग ने अपने अधीन कर रखा है।
पुरातत्व विभाग अब इस टीले की खुदाई की योजना बनाकर काम शुरू करने जा रहा है, ताकि पुराने अवशेषों को एकत्रित किया जा सके। यहां पर बड़े संग्रहालय का निर्माण कर अवशेष को रखा जाएगा। इसके लिए अग्रवाल समाज और सरकार ने व्यापक तैयारियां कर ली हैं। पुरातत्व विभाग की टीम ने 20 जनवरी काे डीजी डॉ प्रवीण कुमार के नेतृत्व में अग्रोहा टीले पर सर्वे करने के लिए पहुंची थी। इसके तकनीकी सहायक शुभम, रविकांत ने टीले पर सर्वे किया। इस टीले काे पुरातत्व विभाग ने 13 जनवरी 1926 की अधिसूचना संख्या 20590 के तहत अधीन कर लिया था। अग्रोहा थेह की खुदाई सबसे पहले अंग्रेजी शासकों ने 1888-89 के दौरान पंजाब प्रांत के पुरातत्व सर्वेक्षक सिटी राजसर ने 16 फुट गहरी खुदाई करवाई थी। उसके बाद उत्खनन का कार्य लंबे रुका रहा।
1938 -39 में अग्रोहा के विशाल टीले के एक भाग के उत्खनन कार्य पुन: प्रारंभ हुआ। टीले की ऊपरी सतह पर ही प्राचीन काल के ईंटों के टुकड़े व अन्य सामग्रियां बिखरी पड़ी थी। गहरी दरारों से ईंटों की दीवारें दिखाई देती थी। जिस पर पुरातत्व विभाग ने खुदाई के बाद पुरानी दीवारों को सुरक्षित रख लिया है। खुदाई के दौरान रोमन सभ्यता के अवशेष मिले हैं फिरोज शाह तुगलक के किले में लगा अशोक का 234 बीसी का पिलर भी अग्रोहा टीले से मिला था।
पुरातत्व विभाग की महानिदेशक डॉ. प्रवीण कुमार ने बताया कि अग्रोहा टीले की खुदाई के लिए केंद्र व राज्य सरकार के सहयोग से पुरातत्व विभाग ने लगभग 35 करोड़ की लागत से कार्य शीघ्र ही शुरू करने जा रही है। आईआईटी कंपनी को एक करोड़ 85 लाख रुपए में खुदाई का ठेका दिया है। जो टीले की खुदाई धरातल से 80 फीट लगभग 220 एकड़ में करेगी। प्रोजेक्ट के लिए भारत सरकार की इजाजत मिल चुकी है। जल्दी अमलीजामा पहनाया जाएगा।
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