
उड़ता पंजाब फिल्म में दिखाई गई नशे की कहानी अब दूध दही के खाने वाले हरियाणा में भी पैर पसारने लगी है। प्रदेश के युवाओं में नशे की लत से टूटते परिवार, बिखरता कॅरियर और बर्बाद होती जिंदगी के बीच युवा फिर से जिंदगी जीने की चाह में नशा मुक्ति केंद्र के बिस्तर पर पड़े हैं। नशे से पीछा छुड़ाने वालों की संख्या भी बढ़ रही है तो महंगे नशे की लत भी।
रोहतक के मानिसक स्वास्थ्य संस्थान के नशा मुक्ति केंद्र के आंकड़े यही बयां कर रहे हैं। कोरोना काल में अप्रैल, मई जून और जुलाई में 250 लोग नशा मुक्ति केंद्र में नशा छोड़ने के लिए पहुंचे हैं। इनमें 75 प्रतिशत वो हैं, जो हेरोइन जैसे नशे की लत के शिकार थे। करीब सभी 21 से 30 के बीच आयु वर्ग युवा इसमें शामिल हैं। वहीं लॉकडाउन के पीरियड में 15 प्रतिशत मरीज ऐसे भी आए हैं, जो एल्कोहल जैसा नशा छोड़ना चाहते थे।
हेरोइन के नशेड़ी का इमरजेंसी की तरह ट्रीटमेंट
मानसिक स्वास्थ्य संस्थान के चिकित्सकों व विशेषज्ञों के अनुसार हेरोइन जैसे नशे की गिरफ्त में आए लोगों को इससे निजात दिलाने के लिए एक लंबी इलाज की प्रक्रिया होती है। मरीज काे पहले मानसिक तौर पर इतना सबल बनाना पड़ता है कि वो नशे को हर हाल में अस्वीकार करे। चिकित्सकों के अनुसार लॉकडाउन में खास बात ये रही कि लॉकडाउन में हेरोइन का नशा छोड़ने की इच्छा रखने वालों का तादाद में कुछ ज्यादा बढ़ोत्तरी रही। संस्थान की ओर से भी इन मरीजों को इमरजेंसी केस मान ट्रीटमेंट दिया गया। इस दौरान करीब 100 मरीज पहुंचे। जिनका संस्थान में इलाज शुरू किया गया। इनमें से कई इलाज के कई महत्वपूर्ण पड़ाव पूरे कर चुके हैं।
शहर में खुलेआम बिक रहा नशा
नशा मुक्ति केंद्र में इलाज के लिए आए मरीजों ने बताया कि रोहतक में कई जगह ऐसी हैं, जहां से किसी भी समय नशा खरीदा जा सकता है। इन इलाकों में गांधी कैंप, माता दरवाजा, करतारपुरा, खोखरा कोट शामिल हैं। यहां लोगों को आसानी से हर प्रकार का नशा उपलब्ध हो जाता है। पुलिस के कई बड़े अभियान भी नशे के इन सेंटरों को बंद नहीं करा पाए।
लॉकडाउन में नशा नहीं मिला तो मुक्ति की राह
मानसिक स्वास्थ्य संस्थान में महंगे और सबसे घातक नशे में शुमार हेरोइन व चरस जैसे पदार्थ के लती हुए लोगों की संख्या पिछले कुछ दिनों में बढ़ी है। एक रिसर्च के मुताबिक इनमें से अधिकतर वो लोग शामिल हैं जिन्हें लॉकडाउन के सख्त नियमों के चलते आसानी से नशा उपलब्ध नहीं हो रहा था। करीब 10 फीसदी युवा तो एेसे थे जिनके परिवारों को भी उनके नशे का शिकार हाेने के बारे में इन्हीं दिनों पता चला। परिवार वालों की सलाह और नशे की उपलब्धता न होने पर जान जाने के डर से ये लोग नशे को छोड़ने के लिए राजी हुए। लॉकडाउन में नशा नहीं मिलने पर ही इन लोगों ने नशा मुक्ति की राह पर पहला कदम बढ़ाया।
कई इलाज के बीच में हो जाते हैं गायब
मानसिक स्वास्थ्य संस्थान के चिकित्सकों का कहना है कि कुछ इलाज को बीच में ही छोड़ दोबारा संपर्क में नहीं आए। प्रदेश के 700 मरीजों से फोन पर संपर्क करके उन्हें नशा छोड़ते वक्त होने वाली परेशानी के बारे में जानने का प्रयास किया गया। 280 में से 75 प्रतिशत मरीजों का ट्रीटमेंट ठीक चल रहा था।
एक-दो बार धीरे-धीरे नशा के बाद आदी बन जाते हैं युवा
एक-दो बार नशा करने के बाद धीरे-धीरे आदी बन जाते हैं। युवाओं को नशे को लेकर किसी प्रकार का कोई दबाव व आकर्षण से बचना चाहिए। -डॉ.सिद्वार्थ आर्य, अस्सिटेंट प्रोफेसर, मानिसक स्वास्थ्य संस्थान।
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