ग्रामीण अंचल में लोककला और संस्कृति से लोगों को जागरूक करने के लिए रविवार को गांव ढिगाना में ब्लू ओशियन फाउंडेशन की ओर से सांझी पूजन कार्यक्रम का आयोजन किया गया। कार्यक्रम के संयोजक गांव ढिगाना निवासी गौतम सत्याराज रहे। इस सांझी कार्यक्रम में पुराने समय की लोक संस्कृति को दिखाने का प्रयास किया, जिसमें पुरानी समय के बर्तन, घड़े ताली, आटा चक्की, दही निकालने की रई आदि का प्रदर्शन किया गया।
इस कार्यक्रम में संस्था के फाउंडर नरेश कालीरमन, जिला प्रधान राजीव यादव, मुकेश, राकेश सरीन शामिल हुए। कार्यक्रम के संयोजक गौतम सत्याराज ने बताया कि ग्रामीण आंचल में स्त्रियां अपने घर आंगन की दीवारों पर सांझी के परंपरागत भित्ति चित्रों की रचना करती है। सांझी का अर्थ सांझ सायं अथवा अर्चना से है। नवरात्रों के दौरान सायंकाल को भक्ति गीतों के साथ पूजा अर्चना करके भोग लगाया जाता हैं।
घर को अनिष्ठ से बचाने के लिए और सौभाग्य अर्जन की मंशा से स्त्रियां इसे एक कृति का रूप देती हैं। मां गौरी देवी की मान्यता भी इस संध्या सांझी से जुड़ी हैं। कुंवारी कन्याओं द्वारा मनाए जाने वाले अनुष्ठानिक व्रत को हरियाणा में ही नहीं, बल्कि समूचे उत्तरी भारत में इनकी मान्यता है लेकिन हरियाणा प्रांत में इसकी छटा निराली होती है। हरियाणा में अश्विन मास के शुक्ल पक्ष से दसवीं तक सांझी की पूजा होती हैं।
घर के आंगन की दीवार पर सांझी को बनाया जाता हैं। अबकी बार इस कार्यक्रम में दीवार पर कोविड का मंत्र दिया गया, जिसमें दो गज की दूरी के साथ मास्क लगाने का संदेश भी दिया जा रहा है। इसके अलावा दीवारों पर हरियाणवी लोककलां को दिखाने के लिए पेंटिंग बनाई गई है। यह कार्यक्रम उन्होंने अपने पुराने घर में किया है जहां पर उन्होंने घर को लोक कलां का म्यूजिमय बना दिया है। अब हर कोई सांझी कलां के साथ पुरानी लोककलां को देखने के लिए ढिगाना गांव में आ रहे हैं।
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